एक परिचय

यह महाविद्यालय वाराणसी जनपद मुख्यालय से लगभग 7 किलोमीटर दूर वाराणसी-गाजीपुर मुख्य मार्ग पर उमरहाँ में स्थापित है। जय प्रकाश महाविद्यालय की स्थापना स्व० जयप्रकाश सिंह की स्मृति में उनके पिता श्री सत्यनारायण प्रसाद ने वर्ष 2004 में किया | जयप्रकाश सिंह ने अपनी विलक्षण प्रतिभा एवं अथक परिश्रम से मारुफपुर में शिक्षण संस्थाओं की स्थापना कर गाँव-गिराव के छात्र-छात्राओं के सर्वांगीण विकास के लिए अनुकरणीय प्रयास किया।

संस्थापक अध्यक्ष
स्व. सत्यनारायण प्रसाद

स्व० जय प्रकाश सिंह का जीवन ग्राम-मारुफपुर, चंदौली से प्रारम्भ हुआ। उन्होंने श्री खेदन लाल राष्ट्रीय इंटर कालेज, चेतगंज, वाराणसी से हाईस्कूल, श्री कमलाकर चौबे आदर्श सेवा विद्यालय, वाराणसी से इण्टरमीडिएट, श्री गणेश राय स्नातकोत्तर डोभी, जौनपुर से बी० एससी० तत्पश्चात श्री कमलापति त्रिपाठी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, चन्दौली से स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा ग्रहण करने के उपरान्त महरुफपुर, चन्दौली में सन् 1995 में जटाधारी प्राथमिक विद्यालय की नींव रखी तदोपरान्त जूनियर हाईस्कूल हाईस्कूल इण्टरमीडिएट कालेज की स्थापना कर सन् 2000 में जटाधारी महाविद्यालय की स्थापना की | जटाधारी महाविद्यालय में शिक्षा संकाय के अन्तर्गत बी०एड० पाठ्यक्रम के प्रारम्भ होने के बाद श्री जय प्रकाश जी को पीलिया जैसी गंभीर बीमारी ने अपने कब्जे में कर लिया और जीवन के अन्तिम यात्रा तक नहीं छोड़ा | प्रकृति प्रदत्त यह प्रकाश 13 सितम्बर 2003 को अन्धकार में विलुप्त हो गया।

विलक्षण प्रतिभा के धनी स्व० जय प्रकाश सिंह की स्मृति में स्थापित जय प्रकाश स्नातकोत्तर महाविद्यालय का उद्देश्य अध्ययन के साथ-साथ छात्र/छात्रा में उन सभी गुणों को विकसित किया जाना है, जिससे उनके व्यक्तित्व का सर्वागीण विकास हो सके तथा छात्र/छात्रा इतने प्रतिभा सम्पन हो वे आकाश में चमकने वाले प्रकाश पुंज की तरह अपनी प्रतिभा, योग्यता, की चमक दुनिया में बिखेर सके, साथ ही साथ एक स्वस्थ समाज के निर्माण में अपना अपूर्व योगदान देते हुए जय प्रकाश के प्रकाश ज्योति को रोशन करे और पूरे दुनिया में अपनी पहचान स्थापित करते हुए माता -पिता व महाविद्यालय की अपेक्षाओ को पूरा कर सके |

महाविद्यालय में राष्ट्रीय सेवा योजना के द्वारा छात्र/छात्रा में देशप्रेम, कर्तव्यनिष्ठा, त्याग, संयम, सहनशीलता धर्मनिरपेक्षता एवं भाईचारे की भावना व अनुशासन द्वारा शिष्टाचार की भावना तथा गणवेश (ड्रेस) द्वारा समानता की भावना जागृत करना है |

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